अर्जुनलाल सेठी
1880 ई. में जयपुर में जन्मे अर्जुनलाल सेठी प्रारंभिक काल में चौमू ठिकाने के कामदार नियुक्त हुए। किन्तु देशभक्ति की भावना के कारण अपने पद से त्याग पत्र देकर उन्होंने 1906 ई. में जैन शिक्षा प्रचारक समिति की स्थापना की, जिसके तत्वाधान में जैन वर्धमान पाठशाला स्थापित की गई। 1907 ई. में अजमेर में जैन शिक्षा सोसायटी की स्थापना की, जो 1908 ई. में जयपुर स्थानान्तरित कर दी गई। अर्जुनलाल सेठी ने वर्धमान विद्यालय क्रान्तिकारियों का प्रशिक्षण केन्द्र बन गया। 12 दिसम्बर 1912 ई. को भारत के गर्वनर जनरल लार्ड हॉर्डिंग्स के जुलूस पर बम फैंके जाने की घटना के पीछे रूपरेखा सेठी जी की ही थी। इस घटना के मुख्य आरोपी जोरावर सिंह बारहठ सेठी के ही शिष्य थे। 20 माचे 1913 ई. के आरा हत्याकांड में भी सभी आरोपी सेठी जी के घनिष्ठ थे। इस प्रकार राजपूताना की क्रान्तिकारी गतिविधियों के संचालक सेठी जी थे। तत्कालीन ए.जी.जी. सी. आर्मस्ट्रांग ने 1914 ई. में जयपुर सरकार को सेठी जी की गतिविधियों के बारे में सावधान किया। उनके जयपुर राज्य में प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया गया। काकोरी कांड के मुख्य आरोपी अशफाकउल्ला खां को सेठी जी ने ही राजस्थान में छुपाया।
लम्बे समय तक आरा हत्याकांड व दिल्ली षड़यंत्र के आरोप में वे नजरबंद रहे। बंदी बनाकर उन्हें वैलूर (मद्रास प्रेसीडेंसी) भेजा गया, जहाँ दुर्व्यवहार के कारण वे 70 दिन अनशन पर रहे। जब 1919 ई. में ये रिहा हुए तो 1920 ई. की नागपुर कांग्रेस को सफल बनाने में जुट गये। इस प्रकार क्रान्तिकारी गतिविधियों के बाद उन्होंने कांग्रेस की नीतियों को समर्थन देना आरम्भ किया। असहयोग आंदोलन में सक्रिय भाग लेने के कारण 1921 ई. में वे पुनः बंदी बनाये गये। 1930 ई, के सत्याग्रह आंदोलन में वे राजपूताना के प्रान्तीय डिक्टेटर नियुक्त किये गये व 1934 ई. में वे राजपूताना व मध्य भारतीय प्रान्तीय कांग्रेस कमेटी के प्रांतपति चुने गये। नीति सम्बंधी मतभेदों के चलते उन्होंने सक्रिय राजनीति से संन्यास ले लिया।
सेठी जी अत्यन्त स्वाभिमानी व्यक्ति कुशल संचालक व ओजस्वी वक्ता थे। जब उन्हें जयपुर के प्रधानमंत्री का पद प्रस्तावित किया गया तो उन्होंने कहा “श्रीमान् अर्जुनलाल नौकरी करेगा तो अंग्रेजों को कौन निकालेगा?” अर्जुनलाल सेठी के राजनीतिक कद का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जब गांधीजी अजमेर आये तो स्वयं सेठी जी से मिलने उनके निवास स्थान पहुंचे। कुशल वक्ता होने के अतिरिक्त उन्होंने कुछ पुस्तकें भी लिखीं, जैसे शूद्र मुक्ति व स्त्री मुक्ति। एक नाटक ‘महेन्द्र कुमार भी लिखा व मंचित करवाया। वे आजीवन सांप्रदायिक सद्भाव के लिये प्रयासरत रहे। 22 सितम्बर 1941 ई. को अजमेर में उनका देहान्त हो गया।
The given photo is not correct .
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dmanish942@gmail.com, sir can you please know me more about shree sethi ji
my grandfather was associated with Arjun Lal Sethi in his school, Vardhaman Vidyalay. please send me the photo to kedarg6500@gmail.com
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