गिलूण्ड सभ्यता

गिलूण्ड सभ्यता

गिलूण्ड सभ्यता

राजसमन्द जिले में स्थित गिलूण्ड कस्बे में बनास नदी के तट पर दो टीलों (स्थानीय भाषा में मोडिया मंगरी) के उत्खनन के फलस्वरूप आहड़ संस्कृति से जुड़ी यह सभ्यता प्रकाश में आई, जिसे बनास संस्कृति के नाम से भी पुकारा जाता है। 1957-58 ई. में बी.बी. लाल के निर्देशन में यहाँ उत्खनन किया गया। तत्पश्चात् 1998 से 2003 ई. के मध्य पूना के डॉ. वी.एस. शिन्दे एवं पेन्सिलवेनिया विश्वविद्यालय (अमेरिका) के प्रो. ग्रेगरी पोशल के निर्देशन में यहाँ उत्खनन किया गया। उत्खनन से ताम्रयुगीन सभ्यता के अवशेष मिले हैं, रेडियो कार्बन तिथि के आधार पर जिसका समय 1900-1700 ई.पू. निर्धारित किया गया है।

सभ्यताताम्रयुगीन सभ्यता(1900-1700 ई.पू.)
अन्य नाम बनास संस्कृति
जिलाराजसमंद
खुदाई स्थलमोडिया मंगरी
नदी क्षेत्रबनास
उत्खनन कार्यबी. बी. लाल(1957-58)
डॉ वि.एस.शिंदे, प्रो. ग्रेगरी पोशल (1998-2003)

गिलूण्ड सभ्यता से प्राप्त अवशेष

  • गिलूण्ड से पाँच प्रकार के मृदभांड प्राप्त हुए हैं। इनमे सादे, काले, पालिशदार, भूरे, लाल और काले चित्रित मृदभांड ।
  • उत्खनन में मिट्टी के खिलौने जैसे – हाथी, ऊंट, कुत्ते की आकृति, पत्थर की गोलियाँ एवं हाथी दाँत की चूडियों के अवशेष मिले हैं।
  • गिलूण्ड में एक मकान के अवशेष में धूप में सुखाई हुई कच्ची ईंट की दिवार मिली है। यहाँ पक्की ईंटों की दीवार भी मिली है। आहड़ में पक्की ईटों का उपयोग नहीं हुआ है, जबकि गिलूण्ड में इनका प्रचुर उपयोग होता था।
  • दीवारों के मध्य अनाज भरने की कोठी एवं चूल्हे के अवशेष भी यहाँ प्राप्त हुए है।
  • ताम्र के बने अस्त्र मिले है। तथा एक मटके में गेंहू के दाने भी मिले है।
  • जंगली जानवर की हड्डियों के टुकड़े प्राप्त हुए है जो यहाँ के मानव के मांसाहारी होने के धोतक है।

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